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जहां मिट्टी लगाने मात्र से ठीक हो जाता है गठिया रोग!

बुंदेलखंड की धरती पर कई देवी-देवताओं के स्थान हैं और उनसे जुड़ी लोगों की आस्थाएं भी अलग-अलग हैं। इन्हीं में से एक है हमीरपुर जनपद के झलोखर गांव में भुवनेश्वरी देवी का अनूठा स्थान जहां न मंदिर है और न कोई मूर्ति। नीम के पेड़ के नीचे एक भारी-भरकम टीले पर विराजमान इस देवी स्थान के बारे में लोगों का मानना है कि यहां की मिट्टी लगाने मात्र से गठिया रोग ठीक हो जाता है। वैसे तो बुंदेलखंड की सूखी की धरती पर लोकी दाई, हरसोखरी दाई, चिथरी दाई, कथरी दाई, भुइयांरानी, काली दाई, पचनेरे बाबा, बरियार चौरा, कंडहा बाबा, मदना बाबा जैसे सैकड़ों देवी-देवताओं के देवस्थान हैं जिनसे ग्रामीणों की ही नहीं, शहरी लोगों की भी आस्था जुड़ी है। कई ऐसे देवस्थान हैं जिनके बारे में लोगों का मानना है कि यहां आने से विभिन्न गम्भीर बीमारियां ठीक होती हैं। झलोखर गांव के भुवनेश्वरी देवी के टीले पर चढ़ौना के रूप में कोई प्रसाद नहीं चढ़ाया जाता, लेकिन यहां रविवार को भक्तों की भीड़ जमा होती है। ज्यादातर भक्त गठिया रोग से पीड़ित होते हैं। लोगों का मानना है कि एक नीम के पुराने पेड़ के नीचे विराजमान भुवनेश्वरी देवी स्थान के टीले की मिट्टी लगाने मात्र से गठिया बीमारी जड़ से दूर हो जाती है। देवी का पुजारी मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार बिरादरी से ही नियुक्त करने की परम्परा है। पुजारी कालीदीन प्रजापति ने बताया कि गठिया से पीड़ित दूर-दूर के लोग यहां रविवार को आते हैं। इसी गांव के निर्भयदास प्रजापति ने बताया कि वर्षो पहले गांव के प्रेमदास प्रजापति को देवी मां ने स्वप्न में कहा था कि उनका स्थान मिट्टी का ही यानी कच्चा रहेगा, ताकि गठिया रोग से पीड़ित लोग अपने बदन में इसे लगा कर चंगा हो सकें। सन् 1875 के गजेटियर में कर्नल टाड ने लिखा है कि इस देवी स्थान के पास के तालाब की मिट्टी में गंधक और पारा मौजूद है जो गठिया रोग को ठीक करने में सहायक होता है। बांदा के अतर्रा स्थित राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज एवं चिकित्सालय के प्राचार्य डॉ. एस एन सिंह का कहना है कि मिट्टी में औषधीय तत्व हैं और नीम में तमाम आसाध्य बीमारियों को ठीक करने की क्षमता होती है, यही वजह है कि इस स्थान की मिट्टी लगाने से गठिया रोगियों को फायदा होता है। अतर्रा डिग्री कॉलेज के संस्कृत विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्ण दत्त चतुर्वेदी बताते हैं कि संस्कृत साहित्य के हिंदी रूपांतरित ग्रंथ 'मां भुवनेश्वरी महात्म्य' के अनुसार यह स्थान उत्तर वैदिककालीन माना गया है और तालाब सूरज कुंड के नाम से विख्यात था। गत रविवार को इस स्थान पर पहुंचे गठिया रोग से पीड़ित सुल्तानपुर की रामश्री, प्रतापगढ़ की रामप्यारी और शाहजहांपुर की भगवनिया ने बताया कि वे यहां तीसरी-चौथी बार आए हैं, उन्हें काफी आराम मिला है। झलोखर गांव के जागेश्वर ने बताया कि यहां लगातार पांच रविवार तक आकर टीले की मिट्टी लगाने से गठिया बीमारी जड़ से खत्म हो जाती है।




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Harpreet Singh
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स्नान करें ठंडे पानी से

 गर्मियों का मौसम स्वास्थ्य की दृष्टि से बड़ा जोखिम भरा होता है। इस मौसम में थोड़ी सी लापरवाही स्वास्थ्य के लिए सिरदर्द बन जाती है, इसके लिए जरूरी है कि हमारे दिन की शुरूआत ठंडे पानी से हो, इससे पूरे दिन ताजगी बनी रहती है। इसके अलावा इससे शारीरिक सौन्दर्य भी बरकरार रहता है। आगर आप भी स्ान के फायदे जानकर उनका लाभ उठाना चाहते हैं तो स्ान करते समय निम्न बातों का अवश्य ध्यान रखें। * गर्मी के दिनों में गर्म पानी से स्ान न करें इससे त्वचा में रूखापन आ जाता है, इसलिए ठंडे पानी का प्रयोग करें। * जिस पानी में साबुन लगाने से झाग नहीं आता ऐसे पानी का प्रयोग न करें यदि विवशता हो तो इसमें तेल आदि का प्रयोग करें या फिर एक कप सिरका, एक मुट्ठी बारिक्स या फिर एक चम्मच जैतून का तेल इसमें डाल लें। इससे पानी का भारीपन कम हो जाता है। * तेल युक्त साबुन, शरीर रगड़ने वाला ब्रुश, बड़ा नरम तौलिया शरीर पर मलने का लोशन व पाउडर का नहाते समय प्रयोग आपके सौन्दर्य में वृध्दि करता है। * बांहों पर भली भांति ब्रुश रगड़ें इससे बाहों में अनावश्यक भारीपन नहीं बढ़ता, वहीं त्वचा के रोम छिद्र भी खुले रहते हैं। *नहाते समय फव्वारे के नीचे शरीर को ढीला छोड़कर खड़े हो जायें या टब में शरीर को ढीला छोड़कर आराम से लेट जायें। * यदि आप गर्मियों के दिनों में भी गरम पानी से नहाने के आदी हैं तो नहाने के बाद पूरा शरीर अच्छी तरह पोंछ लें। इसके बाद पुन: शरीर पर ठंडे पानी के छीटें डाले इससे गरम पानी से त्वचा पर आई खुश्की असर नहीं करती। * अगर नहाने के पानी में कुछ पत्तियां नीम की डाल ली जाये तो आप घमोरियों से बचे रह सकती हैं।


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क्यों खराब है गला

 गला खराब रहना या गले में खराश रहना एक आम समस्या है। गला खराब होना कई अन्य बीमारियों का संकेत देता है जैसे जुकाम शुरू होने या फ्लू होने का संकेत, प्रदूषित हवा, सही खान-पान का न होना, शादी ब्याह में बदपरहेजी करना अधिक ठंडे पदार्थ खाना-पीना और किसी बीमार व्यक्ति के सम्पर्क में रहना गले में खराश और दर्द होने के मुख्य कारण है। इन हालात में गले को आराम देना बहुत जरूरी होता है नहीं तो इसके कारण आप अन्य उलझनों में पड़ सकते हैं। कुछ सरल नुस्खों को अपना कर आप अपने गले की देखभाल कर सकते हैं - - गुनगुने पानी में नमक मिला कर दिन में चार पांच बार गरारे करें। गरारे करने के तुरन्त बाद कुछ ठंडा न लें। गर्म चाय या गुनगुना पनी पिएं जिससे गले को आराम मिलेगा। एक कप पानी में एक चौथाई चम्मच नमक मिलायें। गले में अधिक खराश होने पर विक्स या स्ट्रेपसिल्स की गोलियां चूसते रहें जिससे गले को ठंडक और खराश से राहत मिलती है। दिन में चार गोलियों से अधिक न चूसें। - गले में अधिक दर्द होने पर एक गोली पैरासिटामोल लें ताकि दर्द कम हो जाये। वैसे किसी भी दवा के सेवन से पहले डाक्टर से सलाह अवश्य ले लें। - गले में खराब होने पर स्टीम लेने से भी राहत मिलती है। कमरे को बंद कर हीटर या इलेक्ट्रिक रॉड को पानी की भरी बाल्टी में लगा लें या हीटर पर बड़े बर्तन में पानी भर कर आन कर दें। पानी को खूब उबलने दें ताकि कमरे में स्टीम फैल जाये और यही स्टीम सांस द्वारा अन्दर लेने से गला खुलता है और खराश में राहत महसूस होती है। यह ध्यान रखें कि यदि गले की खराब या दर्द तीन चार दिन तक काबू में न आए तो डाक्टर से जांच अवश्य करवा लें और उनके परामर्श अनुसार दवाइयों का सेवन करें।


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दूध से भी संभव है कुछ रोगों का उपचार

 दूध एक अच्छी खुराक है। शिशु तो पहले-पहले केवल दूध पर निर्भर रहता है। धीरे-धीरे वह फलों के रसों तथा तरल पदार्थ पर लाया जाता है। हमें जीवन भर दूध की आवश्यकता रहती है। केवल पौष्टिकता अच्छी बुध्दि के लिए ही नहीं, अनेक रोगों को भगाने में भी दूध सहायक होता है। * यदि मुंह में, किसी भी कारण से, गर्मी में छाले पड़ जाएं, दिन में तीन बार कच्चे दूध से अच्छी प्रकार गरारे करें। * गाय का दूध उबाल लें। जब यह गुनगुना हो तो हिचकी में एक-एक चम्मच करके पिलाएं। हिचकी ठीक होगी। * गर्मी में खांसी हो तो बकरी का ताजा दूध पिएं। आराम मिलेगा। * गरम दूध पीने से कब्ज नहीं रहता। यदि कब्ज बहुत पुराना व कठोर हो तो बादाम रोगन एक चम्मच डालकर दूध पी लें। * दमे के दौरों से छुटकारा पाने के लिए दूध का सहारा लें। दस दाने मुनक्का लें। इन्हें कूट लें। एक पाव दूध लें। इसमें इतना ही पानी डालें। कुचले हुए मुनक्के इसमें डालें। उबालें। जब दूध एवं पानी की मात्रा आधी रह जाएं तो उतार लें। छानें। आधा तोला बादाम रोगन, एक तोला मिश्री तथा छह दाने काली मिर्च पीस लें। दूध में मिलाएं। यह रोग शांत कर देगा। पीने से सांस ठीक आंखों के अनेक रोगों से छुटकारा पाने के लिए कच्चे दूध को बिलोएं। मक्खन निकालें। अब इसे आंखों में डाले। बड़ा सुख मिलेगा। ड्रापर से डालें। * बच्चों की स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए गाय का दूध पिलाएं। साथ में छोटी इलायची भी खाने को दें। बच्चों की स्मरण शक्ति तीव्र हो जाएगी। * कान में फूंसी होने पर गाय के दूध की बूंदें डालें। आराम पाएंगे। * पेचिश के रोगी को दो-तीन दिन दूध पर रखें। यदि भेड़ का दूध मिल जाए तो एक ही दिन में आराम मिलेगा। * यदि कोई व्यक्ति दस्तों से परेशान हो, आराम न हो रहा हो, उसके लिए एक लीटर दूध उबालें। ठंडा करें। अब लोहे की एक छड़ लें। इसे आग पर गर्म कर लाल करें। चिमटे आदि की मदद से इसे दूध में डालकर ठंडा करें। यह क्रिया सात बार दोहराएं। अब मिश्री या शक्कर डालकर रोगी को पिलाएं। शीघ्र आराम आ जाएगा। * अक्सर नकसीर से परेशान रहते हों तो गधी का ताजा दूध लें।


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