केंद्रीय इंजीनियरिंग संस्थानों में प्रवेश के लिए घोषित परीक्षा की नई व्यवस्था के दो लाभ जाहिर हैं। अब छात्रों को आईआईटी,
एनआईटी और अन्य केंद्रीय इंजीनियरिंग कॉलेजों के दाखिला इम्तिहान में
हिस्सा लेने के लिए अलग-अलग फॉर्म नहीं भरने होंगे। फिर 2013 से होने वाली
संयुक्त प्रवेश परीक्षा में बारहवीं कक्षा में प्राप्त अंकों को भी महत्व दिया जाएगा। इससे छात्रों के लिए स्कूली पढ़ाई को गंभीरता
से लेना आवश्यक हो जाएगा। दूसरी तरफ छात्रों के मूल्यांकन के लिए ज्वाइंट
एंट्रेंस एग्जाम (जेईई) में प्रदर्शन के साथ-साथ अब स्कूली नतीजा भी आधार
होगा, जिससे छात्रों की प्रतिभा एवं योग्यता के आकलन की बेहतर स्थिति
बनेगी। अब इंजीनियरिंग में दाखिला पाने के लिए छात्रों को स्कूल
में बेहतर नतीजा लाना होगा, ऑब्जेक्टिव सवालों के आधार पर होने वाले
जेईई-मेन्स में बुद्धिकौशल दिखाना होगा और हालांकि जेईई-एडवान्स्ड का
फॉर्मेट अभी तय होना है, लेकिन यही संभावना है कि
उसमें ज्ञान की गहराई परखी जाएगी। इन प्रत्यक्ष लाभों के अलावा सभी
इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले के लिए समान मानदंड लागू होंगे, जो अलग-अलग संस्थानों में इंजीनियरिंग शिक्षा के स्तर को समान रूप देने के लिहाज से महत्वपूर्ण साबित होगा। एक साथ होने वाले टेस्ट में आईआईटी के लिए चुने जाने वाले छात्रों का एक अलग तरीका तय करने में सफलता पा ली गई है। यानी पहले नई परीक्षा व्यवस्था से भारत के इन प्रतिष्ठित संस्थानों के स्तर पर खराब असर पड़ने की आशंकाओं का अब समाधान हो गया है। इसके बावजूद
अगर नई व्यवस्था को लेकर किसी स्तर पर कोई शिकायत मौजूद हो, तो सरकार को
चाहिए कि वह संवाद से उन्हें दूर करने की कोशिश करे। एक आशंका उन
स्कूलों के छात्रों को लेकर है, जो राज्य परीक्षा बोर्डो से जुड़े हुए हैं। कहा गया है कि उनका स्तर सीबीएसई से जुड़े स्कूलों के बराबर नहीं है, जिससे वहां के छात्र नुकसान में रह सकते हैं। अगर ऐसा है, तो उन स्कूलों में पढ़ाई का स्तर सुधारने का अभियान चलाने की जरूरत है। मगर एक अलग स्तर पर कमजोरी एक अच्छी कोशिश को रोकने का बहाना नहीं हो सकती।
VISION SOLUTIONS
Harpreet Singh
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